ज़ात बेरंग तो बेनुर सा लहजा करता
कब तलक तु हि बता में तेरा सदमा करता
कोइ मिलता जो ख़रीदार मुक़ाबिल मेरे
शौक़ से में भी दिल-ओ-जान का सौदा करता
तुने अच्छा हि किया देके ना आने की ख़बर
वर्ना ताउम्र तेरी राह में देखा करता
जैसे करता है हर एक शख्स पे ऐसे ही कभी
अय मेरे दोस्त तू ख़ुद पर भी भरोसा करता
थी ये दानाई कहां की जो अंधेरें के लीये
ख़ुद ही घर अपना जलाकर में उजाला करता
सु-ए-आईना कभी जाती जो नज़रें 'असलम'
जाने क्या क्या में मुझे देख के सोचा करता
-असलम मीर
कब तलक तु हि बता में तेरा सदमा करता
कोइ मिलता जो ख़रीदार मुक़ाबिल मेरे
शौक़ से में भी दिल-ओ-जान का सौदा करता
तुने अच्छा हि किया देके ना आने की ख़बर
वर्ना ताउम्र तेरी राह में देखा करता
जैसे करता है हर एक शख्स पे ऐसे ही कभी
अय मेरे दोस्त तू ख़ुद पर भी भरोसा करता
थी ये दानाई कहां की जो अंधेरें के लीये
ख़ुद ही घर अपना जलाकर में उजाला करता
सु-ए-आईना कभी जाती जो नज़रें 'असलम'
जाने क्या क्या में मुझे देख के सोचा करता
-असलम मीर