ज़ात बेरंग तो बेनुर सा लहजा करता
कब तलक तु हि बता में तेरा सदमा करता
कोइ मिलता जो ख़रीदार मुक़ाबिल मेरे
शौक़ से में भी दिल-ओ-जान का सौदा करता
तुने अच्छा हि किया देके ना आने की ख़बर
वर्ना ताउम्र तेरी राह में देखा करता
जैसे करता है हर एक शख्स पे ऐसे ही कभी
अय मेरे दोस्त तू ख़ुद पर भी भरोसा करता
थी ये दानाई कहां की जो अंधेरें के लीये
ख़ुद ही घर अपना जलाकर में उजाला करता
सु-ए-आईना कभी जाती जो नज़रें 'असलम'
जाने क्या क्या में मुझे देख के सोचा करता
-असलम मीर
कब तलक तु हि बता में तेरा सदमा करता
कोइ मिलता जो ख़रीदार मुक़ाबिल मेरे
शौक़ से में भी दिल-ओ-जान का सौदा करता
तुने अच्छा हि किया देके ना आने की ख़बर
वर्ना ताउम्र तेरी राह में देखा करता
जैसे करता है हर एक शख्स पे ऐसे ही कभी
अय मेरे दोस्त तू ख़ुद पर भी भरोसा करता
थी ये दानाई कहां की जो अंधेरें के लीये
ख़ुद ही घर अपना जलाकर में उजाला करता
सु-ए-आईना कभी जाती जो नज़रें 'असलम'
जाने क्या क्या में मुझे देख के सोचा करता
-असलम मीर
बेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteफॉलो करने की जगह कहीं दिखी नहीं
अफसोस तो रहेगा
सादर
मेरे बागीचे
http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
http://yashoda4.blogspot.in/
http://4yashoda.blogspot.in/
http://yashoda04.blogspot.in/
बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही आपने असलम मियां | सुभानाल्लाह!!!
ReplyDeleteएक राय देना चाहूँगा बंधू अपने ब्लॉग पर आप फोल्लोवेर्स वाला विजेट लगायें जिससे श्रोता आपके ब्लॉग का अनुसरण कर सकें |
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